व्यतिरेक
व्यावृत्ताकार अर्थात् भेदधोतक बुद्धि और सत्य प्रयोग के विषय भूत परस्पर विलक्षण उत्पत्ति स्थिति, विपरिणाम, वृद्धि हृास, क्षय, विनाश, गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, दर्शन, संयम, लेश्या, सम्यक्त्व आदि व्यतिरेक धर्म है। भिन्न-भिन्न पदार्थों में रहने वाले विलक्षण परिणाम को व्यतिरेक विशेष कहते हैं। जैसे- गौ और भैंस | द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव से व्यतिरेक चार प्रकार का होता है। व्यतिरेक व्यास अनुमान प्रवर्त में सर्वज्ञ रूप सत्य के अभाव में निर्दोषत्व रूप साधना का भी अभाव दर्शाया गया है, अर्थात् यही सर्वज्ञ नहीं है तो निर्दोषपना भी नहीं हो सकता, ऐसा अनुमान व्यतिरेक व्याप्ति अनुमान है। साध्य के अभाव में साधन का भी अभाव दिखलाना व्यतिरेक व्याप्ति है ।