वेदक सम्यकदर्शन
सम्यक मोहनीय प्रकृति के उदय से पदार्थों का जो चल मल और अगाढ़ रूप श्रद्धान होता है, उसे वेदक सम्यग्दर्शन कहते है। जिसकी सम्यक्त्व संज्ञा है। चार अनंतानुबंधी कषाय, मिथ्यात्व और सम्यक मिथ्यात्व इन छः प्रकृतियों के उदयावलि क्षय और इन्हीं के सदवस्था रूप उपशम से देशघाति स्पर्धक वाली सम्यक्त्व प्रकृति के उदय में जो तत्त्वार्थ श्रद्धान होता है वह क्षयोपशमिक या वेदक सम्यग्दर्शन है । वेदक सम्यक्त्व होने पर जीव की बुद्धि शुभानुबंधी या सुखानुबंधी हो जाती है। शुचिकर्म में रति उत्पन्न होती है, श्रुत में संवेग अर्थात् प्राति पैदा होती है । तत्त्वार्थ में श्रद्धान, प्रियधर्म में अनुराग और संसार से तीव्र निर्वेद अर्थात् वैराग्य जागृत हो जाता है।