वे हेतु
साध्य के अविनाभावी साधन के कहने को हेतु कहते हैं अथवा जो साध्य के होने पर ही होता है साध्य के बिना नहीं होता तथा जिसका निश्चय हो चुका है वह हेतु कहलाता है। हेतु दो प्रकार का है अन्वय और व्यतिरेकी । जो पक्ष और सपक्ष में रहता है तथा विपक्ष से रहित है वह (केवल) अन्वय हेतु है जैसे- पुण्य – पाप आदि किसी के प्रत्यक्ष हैं क्योंकि से जाने जाते हैं। जो जो अनुमान से जाने अनुमान जाते हैं वह किसी के प्रत्यक्ष है जैसे अग्नि आदि यहाँ पुण्य पाप आदि पक्ष है किसी के प्रत्यक्ष यह साध्य है परन्तु अनुमान से जाने जाना हेतु है और अग्नि आदि अन्वय दृष्टान्त है। जो पक्ष में रहता है विपक्ष में नहीं रहता और सपक्ष से रहता है वह ( केवल ) व्यतिरेकी हेतु है जैसे जीवित शरीर जीव सहित होना चाहिए क्योंकि वह प्राण आदि वाला है जो-जो जीव सहित नही होता है वह वह प्राण आदि वाला नहीं होता है। जैसे- पत्थर । यहाँ जीवित शरीर पक्ष है जीव सहितपना साध्य है प्राण आदि हेतु है और पत्थर आदि व्यतिरेकी दृष्टान्त है ।