विशद
ज्ञानावरण कर्म के सर्वथा क्षय से अथवा विशेष क्षयोपशम से उत्पन्न होने वाली और शब्द तथा अनुमान आदि प्रमाणों से नहीं हो सकने वाली जो अनुभव सिद्ध निर्मलता है वही विशद प्रतिभास है जैसे किसी प्रामाणिक पुरुष से अग्नि है इस प्रकार के वचन से और यह प्रदेश अग्निवाला है क्योंकि ‘धुंआ है’ इस प्रकार के धूम आदि चिन्ह से उत्पन्न हुए ज्ञान की अपेक्षा यह अग्नि है, इस प्रकार के इन्द्रिय ज्ञान में विशेषता देखी जाती है वही विशेषता, निर्मलता, विशदता और स्पष्टता आदि शब्दों के द्वारा कही जाती है।