विवाह
साता वेदनीय और चारित्र मोहनीय कर्म के उदय से कन्या के वरण करने को विवाह कहते हैं। विवाह की इच्छा होने पर गुरू साक्षी में सिद्ध भगवान एवं तीन अग्नियों की (अर्हन्तकुण्ड, गणधरकुण्ड व केवलीकुण्ड में) स्थापना करके भगवान की पूजा विधिपूर्वक अग्नि की प्रदक्षिणा देते हुए कुलीन कन्या का पाणिग्रहण करें। सात दिन पर्यन्त दोनों ब्रह्मचर्य से रहें फिर तीर्थ यात्रादि करें । तदनंतर केवल सन्तानोत्पत्ति के लिए सहवास करें। यह विवाह क्रिया है।