विज्ञानाद्वैतवाद
प्रतिभासमान अशेष ही वस्तुओं का ज्ञानस्वरूप से अंतःप्रविष्टपन प्रसिद्ध होने का कारण संवेदन ही परमार्थिक तत्त्व है। इस प्रकार जो-जो भी अवभासित होता है वह ज्ञान ही है, जैसे सुखादि भाव भी अवभासित होते हैं। इसी प्रकार जो जो भी वेदन करने में आता है वह ज्ञान से अभिन्न है, जैसे विज्ञान स्वरूप हीनाधिक पदार्थ वेदन किये जाते हैं। इसलिए यहाँ विज्ञानाद्वैत की सिद्धि होती है। बाहर के ज्ञेय पदार्थों से निरपेक्ष ज्ञानाद्वैत को ही जो कोई बौद्ध विशेष मानते हैं वे विज्ञानवादी है और उनका सिद्धान्त विज्ञानवाद है।