विकलादेश
जब वस्तु के अस्तित्व आदि अनेक धर्म काल आदि की अपेक्षा भिन्न-भिन्न विवक्षित होते हैं, उस समय एक शब्द में अनेक अर्थों की प्रतिपादन की शक्ति न होने से क्रम से प्रतिपादित होता है, इसे विकलादेश कहते हैं । यह नय के आधीन है। निरंश वस्तु में गुण-दोष से अंश कल्पना करना विकलादेश है। जैसे— दाडिम, कर्पूर आदि से बने हुए शर्बत में विलक्षण रस की अनुभूति ओर स्वीकृति के बाद अपनी पहचान शक्ति के अनुसार शर्बत में इलाइची भी है, कप्रूर भी है, इत्यादि विवेचन किया जाता है। उसी अनेकांतात्मक एक वस्तु की स्वीकृति के बाद हेतु विशेष से किसी विवक्षित अंश का निश्चय करना, विकलादेश है।