वाक्य शुद्धि
सत्पुरुष वे मुनि विनय रहित कठोर भाषा को और धर्म के विरुद्ध वचनों को छोड़ देते हैं। अन्य भी विरोध जनक वाक्यों को नहीं बोलते, वे नेत्रों से सब कुछ योग्य अयोग्य देखते हैं और कानों से सब तरह के शब्द सुनते हैं, परन्तु वे गूंगे के समान तिष्ठते हैं, लौकिक कथा नहीं करते। स्त्री कथा आदि विकथा, मिथ्याशास्त्र इनको वे मुनि मन में भी चिन्तन नहीं करते । धर्म प्राप्त बुद्धि वाले मुनि विकथा को मन-वचन-काय से छोड़ देते हैं। हृदय, कण्ठ से अप्रकट शब्द करना, कामोत्पादक हास्य मिले वचन, चतुराई युक्त मीठे वचन पर को ठगने रूप वचन, मद के गर्व से हाथ का ताड़ना इनको वे न स्वयं करते हैं, न कराते हैं। वे निर्विकार उद्यत चेष्टा रहित नियमों में दृढ़ प्रतिज्ञा वाले और परलोक के लिए उद्यम वाले होते हैं। वीतराग के आगम द्वारा कथित अर्थवाली पथ्यकारी धर्म कर सहित आगम के विनयकर सहित परलोक में हित करने वाली कथा को करते हैं। अकम्प परिणाम वाले ऐसे साधुजन वीतरागों के सम्यग्दर्शन आदि रूप मार्ग को मानते हैं और अनगार भावना से सदा आत्मा का ही चिन्तन करते हैं।