वसतिका
साधु के ठहरने का स्थान वसतिका कहलाता है जो उद्गम, उत्पादन और एषणा दोषों से रहित है जिसमें जन्तुओं का वास न हो अथवा बाहर से आकर जहाँ प्राणी निवास न करते हो, जो सजावट आदि से रहित हो जो ग्राम के बाह्य भाग में अथवा अन्त में हो जहाँ बाल वृद्ध साधु व चतुर्विध संघ आ जा सकते हों, जहाँ मनोहर या अमनोहर स्पर्श, रस, गंध रूप एवं शब्दों द्वारा अशुभ परिणाम नहीं होते जहाँ स्वाध्याय व ध्यान में विघ्न नहीं होता, जहाँ रहने से मुनियों की इन्द्रियाँ विषयों की तरफ नहीं जाती, मन की एकाग्रता नष्ट नहीं होती और ध्यान निर्विघ्न होवे ऐसी वसतिका में मुनि निवास करते हैं।