वचन योग
वचन की उत्पत्ति के लिए जो प्रयत्न होता है, उसे वचन योग कहते हैं अथवा भाषावर्गणा सम्बन्धी पुद्गल स्कंधों के अवलम्बन से जो जीव प्रदेशों का संकोच-विस्तार होता है, वह वचन योग है अथवा सत्यादि चार प्रकार के वचनों में जो अन्वयरूप से रहता है उसे सामान्य वचन कहते हैं । उस वचन से उत्पन्न हुए आत्म प्रदेश परिस्पंदन को वचन योग कहते हैं । वचन योग चार प्रकार का है. सत्य वचन योग, असत्य वचन योग, उभय वचन योग और अनुभय वचन योग । यथार्थ या सत्य को कहने में जीव के वचन की प्रयत्न रूप प्रवृति को सत्य वचन योग कहते हैं। जैसे- यथार्थ जल जिसमें स्नान किया जा सके या जिसे पिया जा सके उसे ही जल कहना। अयथार्थ वस्तु को कहने में वचन की प्रयत्न रूप प्रवृत्ति को असत्य वचन योग कहते हैं। जैसे- मृगमारीचिका का जल। सत्य और असत्य वचन रूप योग को उभय वचन योग कहते हैं। जैसे- कमण्डलु में जल भरने की क्षमता देखकर उसे घड़ा कहना । जो वचन योग का सत्यरूप है और न असत्य रूप ही है। उसे अनुभय वचन योग कहते हैं असंज्ञी जीवों को जो अनक्षर रूप भाषा है और संज्ञी जीवों को जो आमंत्रणी आदि भाषाएँ हैं उन्हें अनुभय वचन जानना चाहिए । शुभ–अशुभ के भेद से वचन योग दो प्रकार का है- असत्य बोलना, कठोर बोलना विकथा करना आदि अशुभ वचन योग है तथा संसार से पार करने वाले सत्य हित-मित वचन बोलना शुभ वचन योग है।