वक्ता
जिनमें वक्तृत्व पर्याय अर्थात् बोलने की क्षमता प्रगट हो गई है ऐसे द्वीन्द्रिय से लेकर संज्ञी पंचेन्द्रिय तक सभी जीव वक्ता है अथवा धर्म के उपदेष्टा को वक्ता कहते हैं धर्म का उपदेश देने वाले वक्ता तीन प्रकार के हैं – सर्वज्ञ तीर्थंकर या सामान्य केवली, श्रुतकेवली मुनि और आरातीय अर्थात् परम्परा से ज्ञान प्राप्त आचार्य । जो प्राज्ञ हैं समस्त शास्त्रों के रहस्य (मर्म) को जानता है लोक व्यवहार से परिचित हैं, समस्त आशाओं से रहित हैं, प्रतिभाशाली है, शान्त है, प्रश्न होने से पूर्व ही उसका उत्तर देने में सक्षम हैं, श्रोताओं के प्रश्नों को सहन करने में समर्थ हैं अर्थात् प्रश्न सुनकर न तो घबराता है और न उत्तेजित होता है, दूसरों के मनोगत भावों को जानने वाला है, अनेक गुणों से सम्पन्न है और जो दूसरों की निंदा न करता हुआ स्पष्ट और मधुर शब्दों में धर्मोपदेश करने का अधिकारी होता है ।