रूपातीत ध्यान
वर्ण, रस, गन्ध और स्पर्श से रहित, केवलज्ञानदर्शन स्वरूप जो सिद्ध परमेष्ठी का या शुद्ध आत्मा का ध्यान किया जाता है वह रूपातीत ध्यान है अथवा जिस ध्यान में ध्यानी मुनि चिदानन्दमय शुद्ध, अमूर्त, परमाक्षररूप, परम- आत्मा को निजात्म रूप स्मरण करे वह रूपातीत ध्यान माना गया है। अथवा समस्त अवयवों से परिपूर्ण और समस्त लक्षणों से लक्षित ऐसे निर्मल दप्रण में पड़ते हुए प्रतिबिंब के समान आभा वाले परमात्मा का चिन्तवन करना रूपातीत ध्यान है।