राजा
जो नम्रीभूत अठारह श्रेणियों का अधिपति हो, मुकुट को धारण करने वाला हो और सेवा करने वालों के लिए कल्पवृक्ष के समान हो उसे राजा कहते हैं। राजा के अनेक भेद हैं- जो पाँच सौ राजाओं का स्वामी हो वह अधिराज है जिसकी कीर्ति सभी दिशाओं में फैली हो और जो एक हजार राज्यों का पालन करता हो वह महाराज है जो दो हजार मुकुटबद्ध राजाओं में प्रधान हो वह अर्धमण्डलीक है और जो चार हजार राजों का अधिपति हो मण्डलीक कहलाता है आठ हजार राजाओं के स्वामी को महामण्डलीक कहते हैं सोलह हजार राजाओं का पालन करने वाला अर्ध- चक्री और बत्तीस हजार मुकुटबद्ध राजाओं के स्वामी को चक्रवर्ती कहते हैं।