योगी
जिसने श्वांस को जीत लिया है जिसके नेत्र टिमकार रहित हैं, जो शरीर के समस्त व्यापार से रहित है, ऐसी अवस्था को प्राप्त आत्मा निःसन्देह योगी है। वह दो प्रकार के हैं- शुद्धात्म भावना के प्रारम्भक एवं सूक्ष्य सविकल्प अवस्था में जो स्थित हैं वे प्रारब्ध योगी कहलाते हैं, और निर्विकल्प अवस्था में स्थित पुरुष को निष्पन्न योगी कहते हैं।