भवितव्य
जो होने योग्य हो उसे भवितव्य कहते हैं। अंतरंग और बहिरंग दोनों कारणों के अनिवार्य संयोग द्वारा उत्पन्न होने वाला कार्य ही जिसका ज्ञापक है ऐसी इस भवितव्यता की शक्ति अलंध्य है। अहंकार से युक्त संसारी प्राणी मन्त्र-तन्त्रादि अनेक सहकारी कारणों को मिलाकर भी सुखादि कार्यों के सम्पन्न करने में समर्थ नहीं होता है इसी प्रकार कोई क्रोध आदि करके दूसरे का बुरा चाहने की इच्छा तो रखता है परन्तु ( दूसरे का ) बुरा होना या नहीं होना भवितव्य के आधीन है।