भक्ष्य
जो पदार्थ खाये जाने के योग्य हैं उन्हें भक्ष्य ` कहते हैं। रोग का कारण होने से लाडू, पेड़ा, चावल के बने पदार्थ का त्याग करना चाहिये और सात्विक भोजन करें और योग्य मात्रा में करें। जितना कि जठराग्नि सुगमता से पचा सके। कन्द, बीज, मूल,फल, कण और कुण्ड ये छह वस्तुएँ आहार से पृथक की जा सकती हैं। यदि उनका पृथक करना कदाचित् अशक्य हो तो आहार ही छोड़ देना चाहिए। पुरुष के आहार का प्रमाण बत्तीस ग्रास है, स्त्रियों के आहार का प्रमाण अठ्ठाईस ग्रास है। एक हजार चावलों का एक ग्रास होता है। ऐसे बत्तीस कवल प्रमाण चक्रवर्ती का आहार होता है। सुभद्रा का आहार एक कवल था और एक कवल समस्त लोगों की तृप्ति के लिए पर्याप्त था ।