बौद्धदर्शन
इस मत का अपर नाम सुगत है। सुगत को तीर्थंकर, बुद्ध अथवा धर्म धातु कहते हैं। ये लोग सात सुगत मानते हैं। विपर्या, शिखी, विश्वभू क्रकुच्छन्द, कांचन, काश्यप और शाक्यसिंह ये लोग बुद्ध को भगवान सर्वज्ञ मानते हैं। बुद्ध के कण्ठ तीन रेखाओं से चिन्हित होते हैं। बौद्ध साधु चमर चमड़े का आसन व कमण्डलु रखते हैं, मुण्डन कराते हैं, सारे शरीर को एक गेरुवे वस्त्र से ढके होते हैं। पार्श्वनाथ भगवान के तीर्थ में सरयु नदी के तटवर्ती पलाश नामक नगर में पिहितास्रव साधु का शिष्य बुद्धि कीर्ति मुनि हुआ, जो महाश्रुत और बड़ा भारी शास्त्रज्ञ था। मछलियों का आहार ग्रहण करने से वह ग्रहण की हुई दीक्षा से भ्रष्ट हो गया और रक्ताम्बर (वस्तु) धारण करके उसने एकान्तमत की प्रवृत्ति की । बुद्ध दर्शन आदिक ही एकान्त मिथ्यादृष्टि है। शुद्ध पर्यायार्थिक ऋजुसूत्र नय की अपेक्षा बौद्धवत् जैन दर्शन भी एक निरवयव, अविभागी, एक समयवर्ती तथा स्वलक्षणभूत निर्विकल्प ही तत्त्व मानता है। अहिंसा धर्म तथा शुक्ल ध्यान की अपेक्षा भी दोनों में समानता है। अनेकान्तवादी होने के कारण जैन दर्शन तो उसके विपक्षी द्रव्यार्थिकनय से उसी तत्त्व को अनेक सावयव, विभागी, नित्य व गुण पर्यय युक्त आदि भी स्वीकार कर लेता है। परन्तु एकान्तवादी होने के कारण बौद्धदर्शन उसे सर्वथा स्वीकार नहीं करता है, इस अपेक्षा दोनों में भेद है। बौद्धदर्शन ऋजुसूत्र नयाभासी है। एकत्व अनेकत्व का विधि निषेध व समन्वय ( देखिये द्रव्य / 4 ) नित्यत्व व अनित्यत्व का विधि निषध व समन्वय ( देखिए उत्पाद / 2 ) ।