बोधिदुर्लभ अनुप्रेक्षा
निगोद से निकलना, त्रस पर्याय पाना और संज्ञी पंचेन्द्रिय मनुष्य होना अत्यन्त दुर्लभ है। कदाचित् इसकी प्राप्ति हो जाए तो उत्तम देश, कुल और निरोगता प्राप्त होना कठिन है । इस सबके मिल जाने पर भी विषय सुख से विरक्त होना, रत्नत्रय रूप बोधि को अंगीकार करके तप की भावना करना, समाधि पूर्वक मरण को प्राप्त होना और केवलज्ञान पाना अति दुर्लभ है यही बोधि का सुफल है- ऐसा बार-बार विचार करना बोधिदुर्लभ-अनुप्रेक्षा है।