बध्यमान आयु
जिस आयु को भोगवे सो भुज्यमान अर आगामी जा का बंध किया सो बध्यमान ऐसे दोऊ प्रकार अपेक्षा करि आयु का सत्त्व है। बहुरि आयु कर्म के बंध को करते जीव तिनके परिणामनि के वशतैं (बध्यमान आयु का) अपवर्तन होय । अपवर्तन नाम घटने का नाम है। बहुरि परभव का बध्यमान आयु ताकी उदीरणा नियम करि नाहीं है। जैसे ज्ञानावरणादि कर्मों के समय प्रबंधों के अपकर्षण और परप्रकृति संक्रमण के द्वारा बाधा होती है उस प्रकार आयु कर्म के आबाधा काल के पूर्ण होने तक अपकर्षण और पर प्रकृति संक्रमण के द्वारा बाधा का अभाव है। अर्थात् आगामी भव संबंधी आयु कर्म की निषेक स्थिति में कोई व्याघात नहीं होता। भुज्यमान आयु पर्यंत बद्धमान आयु में बाधा संभव है।