पुरुषाद्वैतवाद
एक ही महात्मा है सोई पुरुष है देव है सर्व विषै व्यापक है। सर्वांगपनै निगूढ़ क अगम्य है, चेतना सहित है, निर्गुण है, परम उत्कृष्ट है। ऐसे एक आत्मा ही करि सबकौं मानना सो आत्मवाद का अर्थ है। ये पुरुष ही सम्पूर्ण लोक की स्थिति सर्ग और प्रलय का कारण है। प्रलय में भी उसकी अतिशय ज्ञानशक्ति अलुप्त रहती है। कहा भी है जिस प्रकार ऊर्णनाभ रश्मियों का, चन्द्रकान्त जल का, बट बीज प्ररोह का कारण है उसी प्रकार वह पुरुष सम्पूर्ण प्राणियों का कारण है। जो हो चुका और जो होगा उन सबका पुरुष ही हेतु है। इस प्रकार की मान्यता पुरुषवाद है।