पिच्छिका
यह दिगम्बर मुनि की पहचान का बाह्य चिन्ह है। यह लोगों में साधु विषयक विश्वास उत्पन्न करने का चिन्ह है तथा इसे धारण करने से मुनिजन प्राचीन मुनियों के प्रतिनिधि स्वरूप हैं, ऐसा निश्चय हो जाता है। यह मयूर के द्वारा स्वतः छोड़े गये पंखों से बनायी जाती है। यह धूल व पसीने से मैली नहीं होती, कोमल, मृदु और हल्की होती है। मुनिराज इसके द्वारा जीव दया का पालन करते हैं, इसलिए इसे संयम का उपकरण कहते हैं। जब मुनि बैठते हैं, खड़े होते हैं, सोते हैं, हाथ-पैर फैलाते हैं तब अपना शरीर पिच्छिका से स्वच्छ कर लेते हैं।