परिणाम
1. द्रव्य के स्वभाव को परिणाम कहा गया है अथवा धर्मादि द्रव्य जिस रूप से होते हैं वह तद्भाव है और इसे ही परिणाम कहते हैं ।2. द्रव्य की जो पर्याय है उसे परिणाम कहते हैं अथवा द्रव्य का अपनी स्वजाति को न छोड़ते हुए जो स्वाभाविक या प्रायोगिक परिवर्तन होता है उसे परिणाम कहते हैं। तात्पर्य यह है कि द्रव्य अपनी मौलिक सत्ता को न छोड़ते हुए एक अवस्था से दूसरी अवस्था को प्राप्त होता है वही परिणाम है।3. जीव के मिथ्यात्व, असंयम और कषायादि भावों को भी परिणाम कहा जाता है। जीव के परिणाम ही संसार के या मोक्ष के कारण हैं। परिणाम दो प्रकार हैं- अनादि और आदिमान । लोक की रचना, सुमेरु पर्वत का आकार इत्यादि अनादि परिणाम हैं। आदिमान परिणाम दो प्रकार के हैंप्रयोगज और स्वाभाविक चेतन द्रव्य के औपशमिक आदि भाव जो मात्र कर्मों से उपशम आदि से होते हैं जिन में पुरुष के प्रयत्न की आवश्यकता नहीं होती वे स्वाभाविक या वैस्रसिक परिणाम हैं ज्ञान, शील, भावना आदि ।