परद्रव्य
आत्मस्वभाव से अन्य जो कुछ सचित्त (स्त्री, पुत्रादिक) अचित्त (धन, धान्यादिक) मिश्र (आभूषण सहित मनुष्यादिक) होता है, वह सर्व परद्रव्य है, ऐसा सर्वज्ञ भगवान् ने सत्यार्थ कहा है। जो आत्मपदार्थ से जुड़ा जड़ पदार्थ है, उसे परद्रव्य जानो, और वह परद्रव्य पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये सब पर द्रव्य जानो। अन्दर के विकार रागादि, भावकर्म और बाहर के शरीरादि नोकर्म तथा मिथ्यात्व व रागादि से परिणत असंयत जन भी परद्रव्य कहे जाते हैं।