पद्धति
सूत्र और वृत्ति इन दोनों का जो विवरण है उसको पद्धति कहते हैं आगम और अध्यात्म की पद्धति, उत्सर्ग और अपवाद व्याख्यान की पद्धति और चारों अनुयोगों की पद्धति को जानना चाहिये। जिसमें अभेद रत्नत्रय के प्रतिपादक अर्थ और पदार्थों का व्याख्यान किया जाता है उसको अध्यात्म शास्त्र कहते हैं। वीतराग सर्वज्ञ द्वारा कहे गए छह द्रव्यों आदि का सम्यक श्रद्धान, सम्यग्ज्ञान और प्रतादि अनुष्ठान रूप रत्नत्रय के स्वरूप का जिसमें प्रतिपादन किया जाता है उसे आगम शास्त्र कहते हैं। उदाहरण आगम भाषा से औपशमिक क्षायोपशमिक और क्षायिक तीन भाव कहे जाते हैं और अध्यात्म भाषा में इसे शुद्धात्म के अभिमुख परिणाम का शुद्धोपयोग इत्यादि के नाम से जाना जाता है इन्द्रभूमि गौतम जब समवसरण में गए तब मानस्तम्भ के दर्शन मात्र से ही आगम भाषा में दर्शन व चारित्र मोहनीय के उपशम या क्षय से और अध्यात्म भाषा में निज शुद्ध आत्मा के सन्मुख परिणाम तथा कालादिलब्धि विशेष से उनका मिथ्यात्व नष्ट हो गया। अध्यात्म भाषा में शुद्धात्म की भावना के बिना और आगम भाषा में वीतराग सम्यक्त्व के बिना व्रत दान आदि पुण्य बंध के ही कारण है मुक्ति के कारण नहीं है। अध्यात्म भाषा में शुद्धात्मानुभूति है लक्षण जिसका ऐसी निर्विकल्प समाधि साध्य है और आगम भाषा में रागादि विकल्प रहित शुक्लध्यान साध्य है। इसी तरह सकल श्रुतज्ञान धारियों को ध्यान होता है यह उत्सर्ग वचन है । अपवाद व्याख्यान की अपेक्षा से तो पाँच समिति और तीन गुप्ति का प्रतिपादन करने वाले शास्त्र के ज्ञान से भी केवलज्ञान होता है यह उत्सर्ग और अपवाद रूप व्याख्यान की पद्धति का उदाहरण है। चारों अनुयोगों की पद्धति प्रथमानुयोग करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग में देखें ।