पदस्थ ध्यान
एक अक्षर से प्रारम्भ करके अनेक प्रकार के पंचपरमेष्ठी वाचक पवित्र मंत्रपदों का उच्चारण करके जो ध्यान किया जाता है उसे पदस्थ – ध्यान कहते हैं, जैसे- एकाक्षरी मंत्र- ॐ, दो अक्षर वाला- अर्हं या सिद्ध, चार अक्षर वाला- अरहंत, पंचाक्षरी मंत्र – णमो सिद्धाणं, नमः सिद्धेभ्यः आदि । शरीर में ध्यान के आश्रयभूत 10 स्थान हैं- नेत्र, कान, नासिका, का अग्रभाग ललाट, मुख, नाभि, मस्तक, हृदय, तालु और भौंहें। इनमें से किसी एक या अधिक स्थानों में अपने ध्येय को स्थापित करना चाहिए । यथा – पंचाक्षरी के मंत्र के ‘अ’ को नाभिकमल में, ‘सि’ को मस्तक कमल में, ‘आ’ को कंठस्थ कमल में, ‘उ’ को हृदय कमल में, ‘सा’ को मुखस्थ कमल में स्थापित करें। सप्ताक्षरी मंत्र (णमो अरहंताण) के अक्षरों को क्रम से दोनों आँखों, दोनों कानों, नासिका के दोनों छिद्रों व जिह्वा इन सात स्थानों में स्थापित करें।