नो इन्द्रिय
यहाँ “नञ्” का प्रयोग “ईषद्” अर्थ में किया है, ईषत् इन्द्रिय अनिन्द्रिय, जैसे ब्राह्मण कहने से ब्राह्मणत्व रहित किसी अन्य पुरुष का ज्ञान होता है, वैसे अनिन्द्रिय कहने से इन्द्रिय रहित किसी अन्य पदार्थ का बोध नही करना चाहिए। जैसे अनुदरा कन्या’ यहाँ ‘बिना पेट वाली लड़की ऐसा अर्थ न होकर गर्भधारण आदि के अयोग्य छोटी लड़की ऐसा अर्थ होता है। इसी प्रकार ‘नञ्’ का ईषद् ग्रहण करना चाहिए । अनिन्द्रिय में ‘नञ्’ का अर्थ क्यों लिया गया । उत्तर – ये इन्द्रियाँ नियत देश में स्थित पदार्थों को विषय करती है तथा कालान्तर में अवस्थित रहती है। किन्तु मन इन्द्रिय का लिंग होता हुआ भी प्रतिनियत देश में स्थित पदार्थ को विषय नहीं करता और कालान्तर में अवस्थित नहीं रहता। सूक्ष्म द्रव्य की पर्याय होने के कारण वह अन्य इन्द्रियों की भाँति प्रत्यक्ष व व्यक्त नहीं है, इसलिए अनिन्द्रिय है ‘मैं शुक्लादि रूप को देखूँ ‘ ऐसे पहले पहले मन का उपयोग करता है, पीछे उसको निमित्त बनाकर ‘मैं इस प्रकार का रूप देखता या रस का अस्वादन करता हूँ’ इस प्रकार से चक्षु आदि इन्द्रियाँ अपने विषय में व्यापार करती है इसलिए इसको अनिन्द्रियपना अथवा नो इन्द्रियपना प्राप्त है।