निश्चय नय
जो अभेद रूप से वस्तु का निश्चय करता है वह निश्चय नय है। निश्चय नय वस्तु को जानने का एक ऐसा दृष्टिकोण है जिसमें कर्ता, कर्म आदि भाव एक-दूसरे से भिन्न नहीं होते। यह दो प्रकार का है- शुद्ध निश्चय और अशुद्ध निश्चय। निरूपाधि गुण और गुणी में अभेद दर्शाने वाला शुद्ध निश्चय नय है। जैसे केवलज्ञानादि ही जीव है अर्थात् केवलज्ञानादि जीव का स्वभावभूत लक्षण है। इस नय की दृष्टि से जीव निज शुद्ध भावों का कर्ता और वीतराग परम आनंद का भोक्ता है। सोपाधिक गुण और गुणी में अभेद दर्शाने वाला अशुद्ध निश्चय नय है। जैसे- मतिज्ञान आदि ही जीव है। इस नय की दृष्टि से जीव, राग-द्वेष- मोह रूप भावकर्मों का कर्ता है और उस भावकर्म के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाले हर्ष विषाद आदि रूप सुख-दुख का भोक्ता है।