निर्विचिकित्सा
जो रत्नत्रय से पवित्र हैं ऐसे मुनिजनों के मलिन शरीर को देखकर घृणा नहीं करना और उनके गुणों के प्रति प्रीति रखना यह सम्यग्दर्शन का निर्विचिकित्सा अंग है।
जो रत्नत्रय से पवित्र हैं ऐसे मुनिजनों के मलिन शरीर को देखकर घृणा नहीं करना और उनके गुणों के प्रति प्रीति रखना यह सम्यग्दर्शन का निर्विचिकित्सा अंग है।
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