निर्मूढ़
सहज निश्चय नय से सहज ज्ञान दर्शन चारित्र और परम वीतराग सुखादि अनेक धर्मों के आधारभूत निज परम पद को जानने में समर्थ होने से आत्मा निर्मूढ़ है अथवा सादिअनंत, अमूर्त, अतीन्द्रिय स्वभाव वाले शुद्ध सद्भूत व्यवहार नय से तीन काल और तीन लोक के स्थान स्वरूप समस्त द्रव्य गुण रूप पर्याय को एक समय में जानने में समर्थ सकल विमल केवलज्ञानरूप से अवस्थित होने से आत्मा निर्मूढ़ है।