नित्य
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सत् और कारण रहित नित्य कहलाता है। सत् के भाव से या स्वभाव से अर्थात् अपनी जाति से च्युत न होना नित्य है । ‘यह वह है’ इस प्रकार का प्रत्यय जहाँ पाया जाता है वह नित्य है।
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