द्वीप
मध्यमलोक में स्थित तथा समुद्रों से घिरे जम्ब्दीप आदि भूखण्डों को द्वीप कहते हैं इनके अतिरिक्त सागरों में स्थित छोटे-छोटे भूखण्ड अन्तर्द्वीप कहलाते हैं, जिनमें कुभोगभूमि अर्थात् जन्मभूमि की रचना है। लवण समुद्र में ये 48 हैं अन्य सागरों में ये नहीं है। असंख्यात द्वीपों में से अढ़ाई द्वीप में भरत ऐरावत आदि क्षेत्र व कुलाचल पर्वत आदि है। हैमवत व हैरण्यवत् क्षेत्रों में जघन्य भोगभूमि, हरि व रम्यक क्षेत्रों में मध्यम भोगभूमि तथा विदेह क्षेत्र के मध्य, उत्तर व देवकुरू में उत्तम भोगभूमियों की रचना है विदेह के 32-32 क्षेत्रों में तथा सर्वविद्याधर श्रेणियों में दुषमासुषमा नामक एक ही काल होता है। भरत व ऐरावत क्षेत्रों में एक-एक आर्य खण्ड और पाँच-पाँच म्लेच्छ खण्ड हैं। सर्व ही आर्य खण्डों में षट्काल परिवर्तन है परन्तु सभी म्लेच्छ खण्डों में केवल एक दुषमा- सुषमा काल रहता है। सभी अन्तर्द्वीपों में कुभोगभूमि अर्थात् जघन्य भोगभूमि की रचना है। अढाई द्वीप से आगे नागेन्द्र पर्वत तक के असंख्यात द्वीपों के एक मात्र जघन्य भोगभूमि की रचना है तथा नागेन्द्र पर्वत से आगे अन्तिम स्वयम्भूरमण द्वीप में एक मात्र दुषमा काल अवस्थित रहता है।