द्रव्यार्थिक नय
द्रव्य ही जिसका प्रयोजन है वह द्रव्यार्थिक नय है अथवा जो पर्याय को गौण करके मात्र द्रव्य को ही ग्रहण करता है उसे द्रव्यार्थिक नय कहते हैं। जैसे यह कहना कि स्वर्ण लाओ। यहाँ द्रव्यार्थिक नय के अभिप्राय से स्वर्ण लाओ, ऐसा कहने पर लाने वाला कड़ा, कुण्डल या स्वर्ण की डली इनमें से किसी को भी ले आने से कृतार्थ हो जाता है क्योंकि उसे मात्र स्वर्ण चाहिए चाहे वह किसी भी रूप में हो। इसी प्रकार वस्तु का कथन करते समय या जानते समय नारकीपना, तिर्यंचपना मनुष्यपना या देवपना और सिद्धत्व पर्याय रूप से रहने वाले एक जीव सामान्य को देखने वाले यह सब जीव द्रव्य हैं ऐसा जानना या कहना ही द्रव्यार्थिक नय की कथन पद्धति है।