दो
यह जघन्य संख्या समझी जाती है। दो की संख्या अवक्तव्य कहलाती है। दो रूपों का वर्ग करने पर चूँकि वृद्धि देखी जाती है अतः दो को नोकृति नहीं कहा जा सकता। और चूँकि उसके वर्ग में से मूल को कम करके वर्गित करने पर वह वृद्धि को प्राप्त नहीं होता किन्तु पूर्वोक्त राशि रहती है, अतः “दो” कृति भी नहीं हो सकता। इस प्रकार मन से निश्चत कर दो संख्या अवक्तव्य है, ऐसा सूत्र में निद्रिष्ट किया है।