दृष्टान्त
जहाँ या जिसमें साध्य और साधन इन दोनों धर्मों के अविनाभावी सम्बन्ध की प्रतिपत्ति होती है, वह दृष्टान्त है। जहाँ साध्य और साधन की व्याप्ति दिखाई जाती है, उसे दृष्टान्त कहते हैं। दृष्टान्त के दो भेद हैं- साधर्म्य और वैधर्म्य अथवा अनवय दृष्टान्त और दूसरा व्यतिरेक दृष्टान्त । साध्य के साथ तुल्य धर्मता से साध्य का धर्म जिसमें हो ऐसे दृष्टान्त को साधर्म्य दृष्टान्त कहते हैं। सर्वदा नित्य है क्योंकि उत्पत्ति धर्म वाला है, जो-जो उत्पत्ति धर्म वाला होता है, वह वह अनित्य होता है, जैसे-घ -घट साध्य के विरुद्ध धर्म से विपरीत वैधर्म्य दृष्टान्त होता है, जैसे- शब्द अनित्य है। उत्पत्यार्थ वाला होने से जो उत्पत्ति धर्म वाला नहीं होता है वह नित्य देखा गया है, जैसे- आकाश, आत्मा, काल आदि । कृतक होने से अनित्य है, जैसे कि घट । यह दृष्टान्त साधर्म्य का है। अकृतक होने से अनित्य नहीं है, जैसे कि आकाश यहाँ व्यतिरेक द्वारा कृतक और अनियत्व धर्मों की व्याप्ति दर्शायी गयी है। जहां हेतु की मौजूदगी से साध्य की मौजूदगी दिखलाई जाए उसे अन्वय दृष्टान्त कहते हैं। और जहाँ साध्य के अभी में साधन का अभाव कहा जाये उसे व्यतिरेक दृष्टान्त कहते हैं। जो जो धूम वाला है, वह वह अग्नि वाला है, जैसे कि रसोईघर । जो-जो अग्निवाला नहीं होता, वह वह धूम वाला नहीं होता, जैसे कि तालाब। यह व्यतिरेक का दृष्टान्त है। जो दृष्टान्त न होकर दृष्टान्तवत् प्रतीक होवै वे दृष्टान्ताभास है। साध्य – विकल, साधन-विकल, उभय – विकल, संदिग्ध-साध्य, संदिग्ध – साधन, संदिग्ध – विकल, संदिग्धोभय, अन्वया सिद्ध, अप्रदशितान्वय और विपरीतान्वय दृष्टान्त सर्वात्मा सदृश्य नहीं पाया जाता। यदि कहो कि सर्वात्मा सदृश्य दृष्टान्त होता है तो चन्द्रमुखी कन्या, यह घटित नहीं हो सकता क्योंकि चन्द्र में भू, मुख, आँख और नाक आदि नहीं पाये जाते ।