दिशा
सूर्य के उदय आदि की अपेक्षा आकाश प्रदेश पंक्तियों में यहाँ से यह दिशा है, इस प्रकार के व्यवहार की उत्पत्ति होती है। अन्धकार का नाश करने वाले सूर्य का पूर्व दिशा में उदय होता है, अतः पूर्व दिशा-प्रशस्त है। विदेह क्षेत्र में तीर्थंकर सदा विद्यमान रहते हैं और विदेह क्षेत्र भरतक्षेत्र की अपेक्षा उत्तर दिशा की ओर हैं अतः उन तीर्थंकरों को हृदय में धारण कर उस दिशा की तरफ आचार्य अपना मुख, कार्य–सिद्धि के लिए करते हैं। पूर्व पश्चिम, दक्षिण और उत्तर ये चार दिशाएँ हैं। इनके मध्य क्रमशः ईशान, आग्नेय नैऋत्य और वायव्य नामक दिशाऐं हैं ।