दवप्रदा कर्म
वन में घास बगैरह को जलाने के लिए आग लगाना दवप्रदा कहलाता है। यह दो प्रकार है- एक व्यसनज और दूसरा पुण्यबुद्धिज बिना प्रयोजन के भीलों द्वारा वन में आग लगवाना दवप्रव है और पुण्यबुद्धि से दीपों में अग्नि प्रज्वलित कराई जाना पुण्यबुद्धिज दवप्रद है और अच्छी उपज होने की बुद्धि से घास आदि को जलवाना पुण्यबुद्धिज दवप्रव है।दश करण बंध, सत्त्व, उदय, उदीरणा, उत्कषर्ण, अपकर्षण, उपशम, संक्रमण निधत्ति और निः काचना ये दश करण प्रकृति प्रति सम्भवै हैं। चार आयु तिनके संक्रमण करण बिना नवकरण पाइये हैं, जातैं चारों आयु परस्पर परिणमें नाहीं। अवशेष सर्व प्रकृतिनिकेँ दश करण कहिए। बंध करण और उत्कर्षण करण ये तो दोऊ जिस-जिस प्रकृतिनिक जहाँ बंध व्युच्छिति भई तिस-तिस प्रकृति ही तहाँ पर्यन्त जानकें नियम करि बहुरि जिस तिस प्रकृति के जे जे स्वजाति हैं। जैसे- ज्ञानावरण की पाँचों प्रकृति स्वजाति हैं। ऐसे स्वजाति प्रकृतिनिकें बंध की व्युच्छिति जहाँ भई तहाँ पर्यंत तिनि प्रकृतिनिक संक्रमण करण जानना।