दर्शनावरणीय कर्म
जो चक्षु इन्द्रिय से होने वाले ज्ञान के पूर्ववर्ती सामान्य प्रतिभास को प्रकट न होने दे उसे चक्षु दर्शनावरणीय कहते हैं जो चक्षु इन्द्रिय के सिवाय शेष इन्द्रियों ओर मन से होने वाले ज्ञान के पूर्ववर्ती सामान्य प्रतिभास को प्रकट न होने दे उसे अचक्षु दर्शनावरणीय कहते हैं, जो अवधि ज्ञान के पहले होने वाले सामान्य प्रतिभास को प्रकट न होने दे उसे अवधि- दर्शनावरणीय कहते हैं, जो केवल ज्ञान के साथ होने वाले सामान्य प्रतिभास को प्रकट न होने दे, उसे केवलदर्शनावरण कहते हैं। पाँचों निद्राओं को दर्शनावरणीय माना है क्योंकि ये जीव के स्वसंवेदन या दर्शनगुण है का विनाश करता है।