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दर्शनावरणीय कर्म 

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" 1 4 8 अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ ए ऐ ओ औ क ख ग घ च छ ज झ ट ठ ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह
दं दक दण दत दन दप दम दय दर दल दव दश दा दि दी दु दू दृ दे दै दो द्
दर्शनव दर्शना

दर्शनावरणीय कर्म 

  • Posted by kundkund
  • Date July 23, 2026
  • Comments 0 comment

जो चक्षु इन्द्रिय से होने वाले ज्ञान के पूर्ववर्ती सामान्य प्रतिभास को प्रकट न होने दे उसे चक्षु दर्शनावरणीय कहते हैं जो चक्षु इन्द्रिय के सिवाय शेष इन्द्रियों ओर मन से होने वाले ज्ञान के पूर्ववर्ती सामान्य प्रतिभास को प्रकट न होने दे उसे अचक्षु दर्शनावरणीय कहते हैं, जो अवधि ज्ञान के पहले होने वाले सामान्य प्रतिभास को प्रकट न होने दे उसे अवधि- दर्शनावरणीय कहते हैं, जो केवल ज्ञान के साथ होने वाले सामान्य प्रतिभास को प्रकट न होने दे, उसे केवलदर्शनावरण कहते हैं। पाँचों निद्राओं को दर्शनावरणीय माना है क्योंकि ये जीव के स्वसंवेदन या दर्शनगुण है का विनाश करता है।

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