तीर्थ
जिसका आश्रय लेकर भव्य जीव संसार से पार होते हैं उसको तीर्थ कहते हैं। भव्य जीव श्रुत से या गणधर की सहायता से संसार से पार होते हैं इसलिए श्रुत और गणधर को भी तीर्थ कहा गया है अथवा जिनमार्ग में निर्मल उत्तम क्षमादि धर्म, निर्मल सम्यग्दर्शन, निर्मल, संयम, निर्मल तप आदि यथार्थ ज्ञान ये ही निर्मल तीर्थ हैं जो कषाय रहित हैं शान्त भाव से युक्त हैं वास्तव में निज निर्मल आत्मा ही तीर्थ है। आत्मस्वरूप निर्मल तीर्थ में दीक्षाशिक्षा रूप स्नान करके भव्य जीव पवित्र होते हैं। निश्चय तीर्थ की प्राप्ति में जो कारण है और मुक्त जीवों के चरण कमलों से पवित्र हैं ऐसे सम्मेदशिखर कैलाश, पावापुर, गिरिनार, चम्पापुर आदि व्यवहार तीर्थ हैं वे तीर्थंकरों के पंचकल्याणकों के स्थान हैं तीर्थ के दो भेद हैं द्रव्य तीर्थ और भाव तीर्थ । जिसकी सहायता से संताप शान्त होता है तृष्णा का नाश होता है और पाप पंक की शुद्धि होती है वह द्रव्य तीर्थ है और साक्षात् जिनदेव भावतीर्थ है। जितने भी तीर्थ पृथिवी पर स्थित हैं वे सब कर्मक्षय के कारण होने से वन्दनीय हैं।