तंडुल मत्स्य
स्वयंभूरमण समुद्र में तिमिगिलादिक महा मत्स्य रहते हैं, उनका शरीर बहुत बड़ा होता है, उनके शरीर की लम्बाई हजार योजन कही गई है, वे मत्स्य छः माह तक अपना मुख खोलकर नींद लेते है। नींद खुलने के बाद आहार में लुब्ध होकर अपना मुख बंद करते हैं, तब उनके मुख में जो मत्स्य आदि प्राणी आते हैं, उनको वे निगल जाते है । वे मत्स्य आयु समाप्ति के अनन्तर अवधि स्थान नामक नरक में प्रवेश करते हैं, उन मत्स्यों के कान में शालिसिक्थ नामक मत्स्य रहते हैं, वे उनके कान का मल खाकर जीवन निर्वाह करते हैं, उनका शरीर तंडुल के सिक्थ के प्रमाण होता है, इसलिए उनका नाम सार्थक है, वे अपने मन में ऐसा विचार करते हैं कि यदि हमारा शरीर इन महामत्स्यों के समान होता तो हमारे मुख से एक भी प्राणी न निकल सकता, हम सम्पूर्ण को खा जाते। इस प्रकार के विचार से उत्पन्न हुए पाप से वे भी अवधिस्थान नरक में प्रवेश करते हैं ।