जिन
क्रोध, मान, माया और लोभ इन कषायों को जीत लेने के कारण अर्हन्त भगवान जिन है या जो राग द्वेष मोह को जीत लेता है वह जिन है अथवा जो कर्म रूपी शत्रुओं को जीतता है वह जिन है सकल जिन और देश जिन के भेद से जिन दो प्रकार के हैं- जो घातिया कर्मों का क्षय कर चुके हैं, वे सकल जिन हैं। अर्हन्त और सिद्ध दोनों सकल जिन है आचार्य, उपाध्याय और साधु तीव्र कषाय, इन्द्रिय एवं मोह के जीत लेने के कारण देश जिन कहलाते हैं। सासादन गुणस्थान से लेकर क्षीण कषाय गुणस्थान पर्यन्त एक देश जिन कहलाता है। अवधिज्ञान स्वरूप जो जिन है, वे अवधि जिन हैं। जो सिद्ध हुई विद्याओं से काम लेने की इच्छा नहीं करते केवल अज्ञान भाव की निवृत्ति के लिये उन्हें धारण करते है, वे विद्याधर जिन हैं।