जल
जैनदर्शन में जल को एकेन्द्रिय जीव माना गया है जल, जलकाय, जलकायिक और जल जीव ये जल के चार भेद हैं जल यह सामान्य भेद है क्योंकि आगे के तीन भेदों में यह पाया जाता है। काय का अर्थ शरीर है जिस जीव के जल रूप काय विद्यमान है उसे जलकायिक कहते हैं। तात्पर्य यह है कि यह जीव जल रूप शरीर के सम्बन्ध से युक्त है। जलकायिक जीव के द्वारा जो शरीर छोड़ दिया जाता है वह जलकाय कहलाता है विग्रह गति में स्थित जिस जीव ने जब तक जल को शरीर रूप से ग्रहण नहीं किया तब तक वह जल जीव कहलाता है। ओस, बर्फ, पाला, जल की बूँदे चन्द्रकांतमणि से उत्पन्न शुद्ध जल, झरने से उत्पन्न जल, मेघ का जल, व घनोदघिवात जल- ये सब जल कायिक जीव हैं इसमें जीवों को जानकर सजीव का त्याग करना चाहिए।