जंतुकर्ण
सब देवता और सब मतों को एक समान मानना वैनयिक मिथ्यादर्शन है। सभी तीर्थंकरों के तीर्थ में वैनयिकों का उद्भव होता है उसमें कोई जटाधारी, कोई मुण्डे, कोई शिखाधारी और कोई नग्न रहते हैं कोई दुष्ट हो, चाहे गुणवान् दोनों में समानता से भक्ति करना और सारे ही देवों को दण्डवत् नमस्कार करना । इस प्रकार के सिद्धान्तों को उन मूर्खों ने लोगों में चलाया । वैनयिक मिथ्यादृष्टि है अविवेकी तामस होते निर्गुण जनो की यहाँ तक की गधों की भी विनय करने अथवा उन्हें नमस्कार करने से मोक्ष होता है ऐसा मानते हैं। गुण और अवगुण से उन्हें कोई मतलब नहीं माता-पिता, राजा और लोकादि की विनय से मोक्ष मानने वाले तापसानुसारी मत 32 होते हैं— वशिष्ट, पाराशर, जतुकर्ण, वाल्मीकि, रोममहर्षिनी, सत्यदन्त, व्यास, एलापुत्र, ओममन्यु, ऐन्द्रदन्त, अपस्थूल आदि के मार्ग भेद से 32 वैनयिक होते हैं ।