चलित प्रदेश
जीव के आत्मप्रदेश चल भी हैं, अचल भी और चलाचल भी हैं। जैसे गर्म जल में पकते हुए चावल ऊपर-नीचे होते रहते हैं, वैसे ही संसारी जीव के आठ रुचकाकार मध्यप्रदेश छोड़कर बाकी के प्रदेश सदा ऊपर नीचे घूमते हैं। विग्रह गति में जीव के प्रदेश चलित ही होते हैं। जीव के चलितपने का तात्पर्य परिस्पन्दन और भ्रमण है। अयोगकेवली और सिद्धों के सभी प्रदेश स्थित हैं। सर्व अरूपी द्रव्य अर्थात् मुक्त जीव और धर्म अधर्म, आकाश व काल में अवस्थित हैं क्योंकि वे अपने स्थान से चलते नहीं हैं। इनके प्रदेश भी अचलित ही हैं। सभी अरूपी द्रव्यों के स्थित अचलित प्रदेश होते है। रूपी अर्थात् संसारी जीव के तीन प्रकार होते हैंचलित, अचलित और चलिताचलित। संसारी जीव के आठ मध्यप्रदेश अचल है और शेष चलाचल दोनों प्रकार के हैं ।