चर्या परीषह जय
मार्ग में चलते हुए तीक्ष्ण कंकर काँटे आदि चुभने से उत्पन्न हुई पीड़ा को समतापूर्वक सहन करना चर्या परीषह जय हैं जिसका शरीर तपश्चरण आदि के कारण अत्यन्त अशक्त हो गया है जैसे खड़ाऊँ आदि का त्याग कर दिया है। तीक्ष्ण कंकड़ और काँटे आदि के चुभने से खेद उत्पन्न होने पर भी पहले उपभोग में आए यान व वाहन आदि से गमन करने का जो स्मरण भी नहीं करते तथा यथा समय आवश्यकों का परिपूर्ण रूप से पालन करते हैं उन मुनियों के चर्या परीषहजय जानना चाहिए।