गृहीता स्त्री
परस्त्री भी दो प्रकार की है- एक गृहीता दूसरे के अधीन रहने वाली, दूसरी अगृहीता स्वतंत्र रहने वाली, इसके सिवाय तीसरी वेश्या भी परस्त्री है गृहीता स्त्री दो प्रकार की होती है। ऐसी स्त्री जिसका पति जीता है और दूसरी ऐसी जिसकी पति तो मर गया है किन्तु माता-पिता अथवा जेठ देवर के यहाँ रहती है। उसके सिवाय जो दासी के नाम से प्रसिद्ध हो और उसका पति ही घर का स्वामी है वह भी गृहीता कहलाती है। यदि वह दासी किसी की रखी हुई न हो, स्वतंत्र हो तो वह गृहीता है। जिसके भाई बन्धु जीते हों परन्तु पति मर गया हो ऐसी विधवा स्त्री को भी गृहीता कहते हैं । कोई यह भी कहते हैं कि जिसका पति और भाई बन्धु मर गये हों तो भी अगृहीता नहीं कहलाती, गृहीता ही कहलाती है, क्योंकि गृहीता का लक्षण उसमें घटित होता है। नीति मार्ग का उल्लंघन न करते हुए राजाओं के द्वारा ग्रहण ही की जाती है, इसलिए गृहीता ही कहलाती है। संसार में यह नीति मार्ग प्रसिद्ध है कि संसार भर का स्वामी राजा होता है। वास्तव में जो इस नीति को मानते हैं उनके अनुसार इसको गृहीता ही मानना चाहिए। उनके मतानुसार अगृहीता उसको समझना चाहिए जिसके साथ संसार करने पर राजा का डर न हो, ऐसे लोगों के मतानुसार रहने वाली कुल्टा स्त्रियाँ दो प्रकार की हैं यह समझना चाहिए, गृहीता और अगृहीता। जो सामान्य स्त्रियाँ हैं वे सब गृहीता में अन्तरभूत कर लेना चाहिये तथा वेश्याएँ अगृहीता समझनी चाहिए।