गर्भ कल्याणक
तीर्थंकरों के गर्भ में आने पर होने वाले उत्सव को गर्भ कल्याणक कहते हैं। तीर्थंकर के गर्भ में आने से छह मास पूर्व से लेकर जन्म पर्यन्त पन्द्रह मास तक उनके जन्म स्थान में कुबेर द्वारा प्रतिदिन तीन बार, साढ़े तीन करोड़ रत्नों की वर्षा होती रहती है। दिक्कुमारी देवियाँ माता की सेवा व गर्भ शोधन करती हैं। गर्भ वाले दिन से पूर्व रात्रि को माता को सोलह उत्तम स्वप्न दिखाई देते हैं जिनके आधार पर तीर्थंकर के आगमन का निश्चय करके माता पिता प्रसन्न होते हैं। सौधर्म इन्द्र आकर माता-पिता को भक्ति भाव से सिंहासन पर बैठाकर उनका अभिषेक- सम्मान आदि करते हैं और तीर्थंकर का स्मरण करके तीन प्रदक्षिणा देते हैं ।