केशलोंच
अपने हाथ की अंगुलियों से मस्तक, दाड़ी व मूँछ के केशों को उखाड़ना यह साधु का केशलोंच नामक मूल गुण है। केशलोंच के दिन प्रतिक्रमण और उपवास करना अनिवार्य होता है। केशलोंच तीन प्रकार से होता है उत्तम, मध्यम व जघन्य। दो महीने के अन्तर से उत्तम, तीन महीने के अन्तर से मध्यम और चार महीने के अन्तर से जो किया जाता है वह जघन्य समझना चाहिए। जीव हिंसा से बचने, याचना रहित स्वावलम्बी जीवन जीने और वैराग्य आदि गुणों को बढ़ाने के लिए केशलोंच किया जाता है।