कुभोगभूमि
लवण समुद्र और कालोद समुद्र के बाह्य और अभ्यन्तर तट पर स्थित छयानवे (96) अन्तर्दीपों में कुभोगभूमि की रचना है। इसी प्रकार 160 विदेहों में से प्रत्येक के 56-56 अन्तर्दीप हैं इसमें भी कुभोगभूमि है। लवण समुद्र के भीतर चार दिशाओं में चार द्वीप, चार विदिशाओं में चार द्वीप और आठ अन्तर दिशाओं में आठ द्वीप, हिमवान् कुलाचल, भरत सम्बन्धी विजयार्ध शिखरी कुलाचल और ऐरावत सम्बन्धी विजयार्ध इन चारों पर्वतों के दोनों अन्तिम भागों के निकट एक-एक अर्थात् कुछ आठ द्वीप हैं इस प्रकार लवण समुद्र के अभ्यन्तर तट के द्वीपों की संख्या 24 हुई इसके बाह्य तट पर भी 24 द्वीप हैं इसी प्रकार कालोद समुद्र के दोनों तटों के 48 द्वीप हैं ऐसे 96 द्वीपों में कुभोगभूमि की रचना है। यहाँ के मनुष्यों की आकृतियाँ विभिन्न प्रकार की होती हैं। कोई मनुष्य एक टाँग वाले, कोई पूँछ वाले, कोई लम्बे कान वाले, किन्हीं मनुष्यों का मुख हाथी, गोमुख, मेढ़ा के मुख सदृश्य होते हैं यहाँ जन्मादि की सर्व प्रवृत्ति जघन्य भोगभूमि सदृश्य होती है, ये सब कुमानुष कहलाते हैं ये 2000 धनुष ऊँचे, मन्दकषायी प्रियंगु के समान श्यामवर्ण वाले और एक पल्य प्रमाण आयु से युक्त होते हैं। जो जीव जिनलिंग धारण करके मायाचारी करते हैं ज्योतिष एवं मंत्रादि विद्याओं द्वारा आजीविका करते हैं, धन के इच्छुक हैं, तीन गारव एवं चार संज्ञाओं से युक्त हैं, गृहस्थों के विवाह आदि कराते हैं, सम्यग्दर्शन के विराधक हैं, अपने दोषों की आलोचना नहीं करते हैं, दूसरों को दोष लगाते हैं, जो मिथ्यादृष्टि पंचाग्नि तप करते हैं, मौन छोड़कर आहार करते हैं, तथा जो दुर्भावना, अपवित्रता, सूतक आदि से एवं पुष्पवती स्त्री के स्पर्श से युक्त तथा जाति संकर आदि दोषों से सहित होते हुए भी दान देते हैं और जो कुपात्रों को पात्र मानकर दान देते हैं, वे जीव मरकर कुभोगभूमि में उत्पन्न होते हैं। जो दिगम्बर साधुओं की निंदा करते हैं, गुरू के साथ स्वाध्याय और वन्दना कर्म नहीं करते हैं, जो मुनिसंघ छोड़कर एकाकी रहते हैं वे भी कुभोगभूमि में उत्पन्न होते हैं।