कामत्व
सकल जगत चमत्कारी खींचकर कुण्डलाकार किये हुए इक्षुकाण्ड के धनुष व उन्मादकार मोहन सन्तापन शोषण और मारण रूप पाँच वाणों से निशाना बाँध रखा है जिसने स्फुरायमान मरक की ध्वजावाला, कमनीय स्त्रियों के समूह द्वारा बंन्दित है सुन्दरता जिसकी, ऐसा रतिनामा स्त्री के साथ केलि करता हुआ चतुरों की चेष्टारूप भूभृंगग मात्र से वशीकृत किया, स्त्रियों का समूह ही है, साधन से ना जिसके, स्त्री पुरुष के भेद से भिन्न समस्त प्राणियों के मन मिलाने के लिए सूत्रधार, संगीत है प्रिय जिसको स्वर्ग और मोक्ष के द्वार में वज्रमयी अर्गले के समान चित्त को चलाने के लिए मुद्रा विशेष बनाने में चतुर, ऐसा समस्त जगत को वशीभूत करने में समर्थ यह कामतत्व है। यह कामतत्व वास्तव में आत्मा ही है।