ऊर्ध्व प्रचय
क्रमभावी पर्यायों में एकत्वरूप अन्वय के ज्ञान द्वारा ग्राह्य जो द्रव्य सामान्य है वही उर्ध्वता सामान्य या उर्ध्व प्रचय है अथवा विविध कालों में एक व्यक्ति गत अन्वय को उर्ध्वता सामान्य कहते हैं जैसे- केवलज्ञान के उत्पत्ति क्षण में जो मुक्तात्मा है वही द्वितीयादि क्षणों में भी है ऐसी प्रतीति होना अथवा पूर्व और उत्तर पर्यायों में रहने वाले द्रव्य को उर्ध्वता सामान्य कहते हैं जैसे- मिट्टी। क्योंकि स्थास कोश, कुसूल आदि जितनी पर्यायें हैं उन सब में मिट्टी अनुगत रूप से रहती है। उर्ध्वप्रचय, उर्ध्वता सामान्य और क्रमानेकान्त ये एकार्थवाची हैं।